संज्ञा (Noun)
किसी व्यक्ति, प्राणी, वस्तु, स्थान, भाव (गुण, अवस्था, क्रिया), समूह के नाम को संज्ञा कहते हैं ।
अंगिका मे संज्ञा के तीन भेद हैं -
व्यक्तिवाचक संज्ञा(Proper Noun),
जातिवाचक संज्ञा (Common Noun),
भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun)
व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun) -
जिन शब्दों से किसी विशेष व्यक्ति (या प्राणी), वस्तु या स्थान का बोध होता हो, उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं ।
व्यक्तियों के नाम - नीतीश कुमार, अटल बिहारी बाजपेयी, इंदिरा गाँधी, बराक ओबामा , राम,।
वस्तुओं के नाम - सफली, बैलगाड़ी, हवाई जहाज ।
स्थानों के नाम - भागलपुर, पुर्णिया, अररिया, खगड़िया, देवघर, गोड्डा, दुमका ।
पहाड़ों के नाम - हिमालय, चुटिया पहाड़, खेरैय पहाड़ ।
पत्र-पत्रिकाओं के नाम - अंग माधुरी, अंग धात्री, प्रभात खबर ।
वेबसाइटों के नाम - अंगिका.कॉम, विकिपीडिया.ऑर्ग, गुगल.कॉम ।
जातिवाचक संज्ञा (Common Noun) -
जिन शब्दों से किसी संपूर्ण जाति, संपूर्ण वर्ग या समूह का बोध होता हो, उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते हैं ।
पशु-पक्षियों के नाम - घोड़ा, शेर, चिड़िया, कौवा ।
फल-फूल तथा सब्जियों के नाम - केला, आम, गुलाब ।
वस्तुओं के नाम - घड़ी, किताब, मेज ।
स्थानों के नाम - घऽर, कोठरी, इसकूल ।
व्यक्तियों की पहचान - माय, बूतरू ।
व्यवसायिक पहचान - डॉक्टर, इंजीनियर, गुरूजी, पंडिजी ।
भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun) -
जिन शब्दों से पदार्थों के गुण-दोष, दशा, अवस्था, धर्म, क्रिया के व्यापार आदि का बोध होता हो, उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं ।
गुण-दोष - मित्रता, शत्रुता, दुलार, प्यार ।
अमूर्त भाव - मिठास, खटास, गोस्सा ।
अवस्था - बुढ़ापा, जवानी, बचपन ।
क्रिया केरऽ व्यापार - लिखावट, सजावट, पढ़ाई ।
रूप रचना की दृष्टि से अंगिका में संज्ञापद तीन प्रकार के होते हैं - लघु या हृस्व, गुरू या दीर्घ, अति गुरू या अतिरिक्त रूप ।
लघु - गुरू - अति गुरू
फुद्दन - फुदना - फुदनमा
माली - मलिया - मलीबा या मलियबा
साड़ी - सड़िया - सड़िबा
बगरो - बगरिया - बगरोय्या
मास्टर-मस्टरबा-
लघु क॑ गुरू या अति गुरू बनाने हेतु शब्दों में -आ, -या, -मा, -बा आदि प्रत्यय जोड़े जाते हैं ।
अंगिका के व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्दों की कुछ विशेषता :
अंगिका के व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्दों में सामान्यतः नामों को छोटा कर देने की प्रवृति दिखती है - जैसे अन्नतलाल को अन्तो (प्यार से बोलने के लिए), अन्ता (बड़े द्वारा छोटे को पुकारने के लिए प्रयुक्त) ।
हरिनारायण को दीर्घान्त हरी में बदलने की प्रवृति दिखती है ।
वहीं आकारान्त स्त्रीलिंग को अनादर या कनिष्ठता सूचित करने के लिए इया से युक्त करके बोलते हैं । जैसे - सीता - सितिया, राधा - रधिया । ऐसे शब्द संरचना में आदि दीर्घ स्वर, ह्रस्व में बदल जाता है ।
अंगिका के जातिवाचक संज्ञा शब्दों की कुछ विशेषता :
जातिवातक संज्ञा शब्दों में भी इया लगता है । सामान्यतः यह अनादर या लगाव के अर्थ में प्रयुक्त होता है । जैसे : गाय - गइया, बाछी - बछिया, माय - मइया ।
कहीं कहीं संज्ञा शब्दों का अंतिम व्यंजन द्वित्व रूप में मिलता है । जैसे : भात - भत्ता, दूध - दूद्धा । ऐसी शब्द सरंचना में आरंभिक दीर्घ स्वर ह्रस्व में बदल जाता है ।
संज्ञा शब्दों में वा, इबा आदि लगाकर भी नया संज्ञा शब्द निर्माण की प्रवृति दिखती है । जैसे : फूल - फुलबा, भाय - भइबा ।
संज्ञा के विकार :
जो शब्द संज्ञा में विकार (या परिवर्तन) लाते हैं, वे विकारी तत्व कहलाते हैं ।
ये हैं - लिंग, वचन, कारक
लिंग, वचन और कारक के बारे में हम अलग अध्याय में अध्ययन करेंगें ।
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